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"स्थान, समय, राज्य और सरकारें बदलती हैं, पर दलितों की दशा नहीं।"
राजस्थान के बाड़मेर जिले के गुड़ामालानी थाना क्षेत्र के भाखरपुरा गांव में दलित युवक के साथ हुई इस अमानवीय घटना ने राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है। युवक के हाथ-पैर बांधकर उसे पेड़ से उलटा लटकाकर जिस तरह बर्बरता पूर्वक उसकी पिटाई की गई, वह न केवल मानवता को शर्मसार करने वाला है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि दलितों पर अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।
हर चुनाव में हर राजनीतिक दल दलितों के अधिकारों और उनके उत्थान की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। परंतु सत्ता में आने के बाद यही वादे खोखले साबित होते हैं। दलितों के साथ अत्याचार, शोषण और भेदभाव की घटनाएं समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी असमानता को उजागर करती हैं।
जब तक राजनीतिक दलों की नीतियों में वास्तविक इच्छाशक्ति नहीं आएगी, तब तक "विकास" और "न्याय" के दावे दलित समाज के लिए सिर्फ खोखले शब्द बने रहेंगे। दलितों को न्याय तभी मिलेगा जब सत्ता में बैठे लोग उनके अधिकारों को सिर्फ वोट बैंक के चश्मे से नहीं, बल्कि इंसानियत के नजरिए से देखना शुरू करेंगे या दलित ही सत्ता में नहीं आ जाते।
अब वक्त आ गया है कि समाज जागें, अन्यथा यह व्यवस्था परिवर्तन का सपना हमेशा अधूरा रहेगा। दलितों को नारों के बहकावे में आने की कोई आवश्यकता नहीं है, बल्कि सत्ता पर कब्ज़ा करने की आवश्यकता है क्योंकि हमारे परम पूज्य बाबा साहेब ने कहा था, "राजनीतिक सत्ता वो चाबी है, जिससे सभी समस्याओं का समाधान संभव है।"
मैने इस टैक्स्ट को ट्वीट से उठाया है।
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